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एक और तरीका भी है जिस से हम कक्षा में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं. ये है इस बात पर बल देकर कि अपने आप सोचने की बजाये, दूसरों की नक़ल करो, अनुसरण करो, या उनके हिसाब से चलो. हमारी सदियों पुरानी परम्पराएँ आज्ञापालन और बिना सोचे अपने से 'बड़ों' और बुजुर्गों और गुरुओं और अधिकारीयों को आदर देना सिखाती हैं. ये जो हमारे 'ऊपर' हैं, इन पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता - इसे एक बहुत बड़ी बेईज्ज़ती समझा जाता है, केवल व्यक्ति की ही नहीं बल्कि 'कुर्सी' की, हमारी पुरानी परम्पराओं की और पूरे समाज के आधार की! 'अधिकार' वाले व्यक्ति की तो 'नीचे' वालों की ओर कोई जवाबदेही ही नहीं होती, और पूरी तरह 'सत्ता' उसके हाथ में होती है. और जैसा कि हम जानते ही हैं, सत्ता में आना भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा दे सकता है.
इस सब के चलते हमारे स्कूलों में बच्चों को किस तरह के रोल मॉडल मिलते हैं? कई जगहों पर होते हैं ऐसे शिक्षक जो शायद समय पर नहीं आते हों, या पढ़ाते नहीं हों, या बच्चों से बुरा बर्ताव करते हों (पीटना तो कई बार दूसरे कामों की तुलना में इतना बुरा नहीं होता!), और अलग-अलग तरीकों से अपनी धाक जमाते हों, और बच्चों की ओर प्रतिबद्धता कम ही दिखाते हों. जब बच्चों को खुद ऐसे ही अधिकार वाली भूमिका दी जाती है (जैसे कि मोनिटर बनना या समूह का नेता), सबसे पहले वे उसी 'अधिकारी-पन' और 'धाक' कि नक़ल करते हैं. छोटी बच्ची भी जब गुड़ियों के साथ 'टीचर-टीचर' का खेल खेलती है तो वह छड़ी उठाकर चेतावनी देती हुई निगाहों से गुड़ियों की ओर देखती है! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि बड़े होते-होते बच्चे ये ही समझ जाते हैं कि जब भी वे ऐसी पोजीशन में हों जहाँ वे दूसरों के 'ऊपर' हों, तो उन्हें अपना दबदबा जमाना है, जवाबदेही नहीं लेनी है और जो कुछ अपने लिए ले सकते हैं उसे हड़प लेना है भले ही दूसरों को कितना नुक्सान हो (आख़िरकार, आप की 'पोजीशन' आपके अपने लिए है, 'उनके' लिए नहीं). अगर ये भ्रष्टाचार नहीं तो क्या है?
शायद इसी वजह से हमारे समाज में और विशेषकर हमारी कक्षाओं में, जो बच्चा सवाल पूछता है उसे 'तंग करने वाला' समझा जाता है, उससे कहा जाता 'बहुत स्मार्ट मत बनो, नहीं तो देख लेंगे!' और यहीं आकर शिक्षा में सुधार की हमारी कोशिशें फुस्स हो जाती हैं. चूँकि नई 'सक्रिय' शिक्षण विधियाँ बच्चों के खुद से सोचने पर जोर देती हैं, और सवाल पूछने, खोज-बीन, चिंतन-विश्लेषण कर के अपने निष्कर्षों तक पहुँचने को बढ़ावा देती हैं - और इनके बारे में समझा जाता है कि ये तो हमारे समाज के आधार और कक्षाओं के परम्पराओं पर चोट पहुंचाती हैं.
अगर हमारी कक्षाएं ऐसे होती जहाँ बच्चे सवाल उठा सकते, उन्हें ये पूछने में देर नहीं लगती कि शिक्षक वे क्यों नहीं कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए. वे समुदाय के साथ कई तरह के मुद्दे उठाते - सुविधाओं, स्कूल चलने के समय, प्रक्रियाओं और उनके अपने अधिकारों के बारे में... और भ्रष्ट्राचार व उसका रोल मॉडल बनाना मुश्किल हो जाता. तो हो सकता है कि आपको लगे कि मैं बेकार में ही इसे षड़यंत्र समझता हूँ, लेकिन मुझे तो लगता है कि 'शिक्षक का अनुपालन करो' भ्रष्टाचार को बनाये रखने और छोटी उम्र में बच्चों में भ्रष्ट बनने के सम्भावना को पैदा करने का हिस्सा ही है.