टीवी के सामने कुछ मिनिट गुज़ारिए या किसी पत्रिका के पन्ने पलटिये, आप को विश्वास हो जायेगा कि अच्छा या खुबसूरत दिखना हमारे समाज में एक बहुत बड़ा लक्ष्य है! विज्ञापन पर विज्ञापन लदे हुए हैं - तरह-तरह की क्रीमों, फेस वॉश, शेम्पू, रेज़रों, गहनों, कपड़ों के - सब बताते हुए कि अब हम 'दिखना' युग में पहुँच चुके हैं. अगर आप वैसे 'दिखते' नहीं, तो जैसे आप हैं ही नहीं!
पर जैसे-जैसे हम अपने शरीरों को सवांरते हैं, अच्छा होगा अगर हम अपने मन को भी सवांरें. ऐसा नहीं कर पाने की वजह से ही हमारी बहुत सारी मुश्किलें पैदा हुई हैं या चलती जा रहीं हैं. उदहारण के लिए देखें हमारी शिक्षा व्यवस्था को, जिसमें ५७ लाख शिक्षक और करीब ३ लाख अधिकारी अलग-अलग स्तर पर हैं. अब अपने लुढ़कते-पुढ़कते ढंग से व्यवस्था चलती तो जा रही है, लेकिन इसके सामने भी यही समस्या है. हमारे चिंतन की धार इतनी कम हो चुकी है या कौशल इतने सीमित हो चुके हैं कि परिवर्तन के हरेक चरण पर बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
इस स्तिथि से उभरने के लिए हम क्या कर सकते हैं? कुछ शुरुआती सुझाव:
पर जैसे-जैसे हम अपने शरीरों को सवांरते हैं, अच्छा होगा अगर हम अपने मन को भी सवांरें. ऐसा नहीं कर पाने की वजह से ही हमारी बहुत सारी मुश्किलें पैदा हुई हैं या चलती जा रहीं हैं. उदहारण के लिए देखें हमारी शिक्षा व्यवस्था को, जिसमें ५७ लाख शिक्षक और करीब ३ लाख अधिकारी अलग-अलग स्तर पर हैं. अब अपने लुढ़कते-पुढ़कते ढंग से व्यवस्था चलती तो जा रही है, लेकिन इसके सामने भी यही समस्या है. हमारे चिंतन की धार इतनी कम हो चुकी है या कौशल इतने सीमित हो चुके हैं कि परिवर्तन के हरेक चरण पर बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
- शिक्षा से जुड़ा हरेक व्यक्ति (stakeholder) किस तरह चाहे गए बदलाव के कल्पना करे, या कैसे खुद अपना vision बनाये?
- ऊपर से नीचे जितने लोग जुड़े हैं, वे कैसे इतने व्यापक और विशाल परिवर्तन की संकल्पना करें, उसे समझने की शुरुआत करें?
- चूंकि परिवर्तन के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना ज़रूरी है, कैसे हर व्यक्ति की मदद करें कि वह बेहतर योजना बना सके - अर्थात, चाहे गए लक्ष्य को पहचान सके, वर्तमान स्तिथि उनसे कितनी दूर है (या गेप्स क्या हैं) समझ सके, संभव 'हल' ढूंढ सके, अलग-अलग विकल्पों के बीच चुन सके कि कौन से सबसे उपयुक्त हैं, और क्रम और प्राथमिकता में अंतर पकड़ सके!
इस स्तिथि से उभरने के लिए हम क्या कर सकते हैं? कुछ शुरुआती सुझाव:
- जो भी प्रमुख क्रियाएँ / कार्य आप करतें हैं, उनकी सूची बनाएं
- अब पहचानें कि इनमें आप कौन-कौन से चिंतन कौशलों या सोचने के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं (जैसे, क्या आप को अधिक सृजनात्मक होने की ज़रूरत पड़ती है, या आप को उपलब्ध जानकारी से बंध कर ही तार्किक नतीजों तक पहुंचना होता है?)
- इन चिंतन कौशलों का अभ्यास करें
- नए कदमों या एक्शन लेने के पहले, उपयुक्त चिंतन औजार / तरीके को चुनें
- और अंत में, समय-समय पर अपने विचारों को धोना ना भूलें! याने, ये ज़रूर सोचें कि कहीं रोज़मर्रा के कामों में उपयोग किये जाने वाले विचार कहीं बासी तो नहीं हो गए हैं? या धूल से ढक तो नहीं गए हैं, या ज्यादा ही पुराने तो नहीं हो गए हैं? उन्हें त्याग कर नए विचारों को अपनाने की ज़रूरत तो नहीं है?
उम्मीद है कि 'दिखना' युग में भागीदार बनाने के साथ-साथ हम में से कम से कम कुछ लोग तो 'सोचना' युग की रचना ज़रूर करेंगे!